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Wednesday, January 12, 2011

अगर हम कामना और आशा को त्याग दें तो जीवन में उन्नति कैसे करेंगे




जिज्ञासु : गुरुदेव ! कहा जाता है कि कोई कामना मत रखो ,आशा मत रखो ! अगर हम कामना और आशा को त्याग दें तो जीवन में उन्नति कैसे करेंगे ? कामना ही तो कार्य करने की प्रेरणा देती है ! कृपया स्पष्ट करें !

विश्वप्रकाश गुप्ता ,रीवा (म प्र)
-पूज्य गुरुदेव :कामनायें जगानी बुरी बात नहीं , आशायें और आकाक्षायें पालना बुरी बात नहीं,क्योंकि व्यक्ति इसी आधार पर उन्नति करता है ! दूसरों को देख कर अन्दर से प्रेरणा आती हे तो ईंसान आगे बढ्ता है ,पुरुशार्थ करता है! आशायें आकाक्षायें हमारे मन में आगे बढने की इच्छा पैदा करती हैं ! आवश्यकता अविष्कार को जन्म देती है ! आविष्कार के माध्यम से मनुष्य तरह -तरह की चीजें प्राप्त करते हैं ! लकिन आप जानते हैं कि कोई भी चीज नियंत्रण में है तो अच्छी है ,नियंत्रण से बाहर गयी तो वही चीज खतरनाक हो जाती है ! अग्नि जब तक आपके नियंत्रण में है , तो उसके द्वारा आप भोजन पकाइये , तरह - तरह के उपक्रम चलाइये ! गाडी के अन्दर भी अग्नि का माध्यम लेकर मनुष्य उसे संचालित करता है ! अग्नि के सहारे ही मनुष्य पेट भर रहा है ! सब कुछ ठीक है , लेकिन ऐक छोटी सी चिनगारी थोड़ी सी अनियत्रित होकर विशाल रूप धारण कर ले तो फिर उस अग्नि को हितकारीमत मानना ! वह विनाशकारी हो जायेगी ! घी का उपयोग करते हुए लोग अपनी सेहत बनाते हैं , लेकिन नियंत्रणा न कर अधिक मात्रा में इसका सेवन करें तो घी भी विष हो जायेगा ! अगर मर्यादा से हटकर बिना माप-तोल के आप अमृत लेंगे तो अमृत भी विष का काम करेगा ! आशा,आकांक्षा मन में पालना अच्छी बात है , लेकिन उन पर बुधि का नियंत्रण होना बहुत जरूरी है !

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