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Friday, August 5, 2011

जिज्ञासु :-गुरुदेव जब भी भक्ति मैं बैठता हूँ तो मन मैं एक अनिश्चय


जिज्ञासु :-गुरुदेव जब भी भक्ति मैं बैठता हूँ तो मन मैं एक अनिश्चय का भाव हे कि व्यक्ति गुरु की जाय या भगवान् की ? गुरुमंत्र जपू या भगवान के मंत्रलक्ष्य तो परमात्मा है फिर हम कहाँ से और कैसे शुरू करें ?
महाराजश्री :- नवधा भक्ति का उपदेश देते हुए स्वंय भगवान ने भी गुरुभक्ति को ही प्रथम भक्ति कहा हे ! अपने मान ,अहंभाव कप मिटाकर गुरु के चरण कमलों की सेवा मैं मन लगाने से प्रभु भक्ति और निष्कपटता प्राप्त होती है ! गुरु द्वारा दिए गए मंत्र-जप  से परमात्मा मैं दृढ विशवास जागृत होता है ! तुलसीदास जी कहते हैं ,जैसे शरद्रितु के आते ही बरसाती कीड़े नष्ट हो जाते हैं और अपनी ज़मीन साफ होजाती , उसी प्रकार सदगुरु  के मिलते ही संशय और भ्रम नष्ट हो जाते है ,और हृदय निर्मल हो जाता हे १ सदगुरू ही हमें सच्चा ज्ञान दे कर लक्ष्य की प्रेरणा देता हे ! जिसने भी पूर्ण सदगुरु का सान्निध्य प्राप्त किया उसके भाग का उलझा हुआ ताना -बाना स्वय ही सुलझ जाता है ! उसे भगवान प्राप्त  होते हैं !

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