जिज्ञासु : पुज्य गुरुदेव ! बार -बार प्रयास करने पर भी मन से अशान्ति नहीं जाती ! एक व्याकुलता,एक बेचैनी बनी ही रहती है ! कृपया कोई उपाय बतायें जिससे मैं शान्तिपूर्वक अपने कार्य और भगवान की भक्ति कर सकूँ !
महाराजश्री : जब तक इंसान बच्चों जैसा भोलापन अपने अंदर रखता है , उसके अंदर अशांति नहीं रहती ! जैसे -जैसे माया की परत व्यक्ति के ऊपर बढती जायेगी , वैसे-वैसे मन अशांत होगा ! मनुष्य जितना कृत्रिम है ,बनावटी है ,दिखाने वाला है उतना ही अशांत है और जितना सरल ,सहज ,प्रेमपूर्ण है उतना ही वह शांत एवं आनदित है ! दुनिया में कोई अशांत होना नहीं चाहता लकिन कार्य अशांति के करता है ! अशांति वाले कार्य करके शान्ति कैसे संभव होगी ! आसक्ति रहित होकर कर्तव्य की भावना से सहज सरल होकर कार्य कीजिए शांति अवश्य अंदर आयेगी !
महाराजश्री : जब तक इंसान बच्चों जैसा भोलापन अपने अंदर रखता है , उसके अंदर अशांति नहीं रहती ! जैसे -जैसे माया की परत व्यक्ति के ऊपर बढती जायेगी , वैसे-वैसे मन अशांत होगा ! मनुष्य जितना कृत्रिम है ,बनावटी है ,दिखाने वाला है उतना ही अशांत है और जितना सरल ,सहज ,प्रेमपूर्ण है उतना ही वह शांत एवं आनदित है ! दुनिया में कोई अशांत होना नहीं चाहता लकिन कार्य अशांति के करता है ! अशांति वाले कार्य करके शान्ति कैसे संभव होगी ! आसक्ति रहित होकर कर्तव्य की भावना से सहज सरल होकर कार्य कीजिए शांति अवश्य अंदर आयेगी !
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