
महाराजश्री :-ऐसा नहीं है कि क्रोधी व्यक्ति भक्ति नहीं कर सकता , अथवा उसकी भक्ति सफल नहीं होती , वह भक्ति भी कर सकता है , उसकी भक्ति सफल भी हो सकती है लेकिन भक्ति द्वारा वह हो दिव्य शक्ति उपार्जित करता है वह क्रोध के कारण क्षीण हो जाती है ! विश्वामित्र के साथ भी ऐसा ही हुआ ! वे तपस्या के द्वारा जो पुण्य , जो शक्ति उपार्जित करते थे वह उनके क्रोध करने से नष्ट हो जाती थी ~ और उनकी वर्षों की तपस्या व्यर्थ हो जाती थी ! इसीलिए बहुत चाहने पर भे वे ब्रह्मर्षि पद को तब तक न पा सके जब तक उनहोंने अपने क्रोध पर पुरी तरह विजय प्राप्त न कर ली और उनकी भक्ति सफल तभी हुई जब वे क्रोध से रहित हो गए !