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Tuesday, November 1, 2011

अनुशासन का पाठ



---------- Forwarded message ----------
From: Maneesh Bagga


यह उन दिनों की बात है, जब डॉ. जाकिर हुसैन जामिया मिलिया इस्लामिया की हालत सुधारने में जुटे थे। एक दिन उन्होंने शिक्षकों से कहा, 'हम चाहते हैं कि हमारे छात्र अनुशासन का पालन करें। वे साफ-सफाई पर ध्यान दें। उनके कपड़े साफ-सुथरे हों। उनके जूतों पर अच्छी तरह पॉलिश हो। इससे विश्वविद्यालय का शैक्षणिक माहौल बेहतर होगा।'
अगले दिन उन्होंने इसके लिए एक नोटिस जारी किया। फिर छात्रों को मौखिक आदेश भी दिया। कुछ दिन बाद अध्यापकों ने उनसे कहा, 'हम लोगों ने कई बार प्रयास किया, मगर छात्रों पर कोई असर नहीं पड़ा। इसके लिए कठोर कार्रवाई की जरूरत है।' जाकिर हुसैन ने कहा, 'नहीं, कठोर कार्रवाई का छात्रों पर गलत असर पड़ेगा।' मगर उन्होंने तय कर लिया कि वह अपना मकसद किसी भी कीमत पर हासिल करके रहेंगे। अगले दिन सुबह-सुबह छात्रों ने विश्वविद्यालय के गेट पर एक व्यक्ति को बैठे देखा, जो सबसे जूते पॉलिश कराने के लिए कह रहा था।
कुछ छात्रों ने उससे जूते पॉलिश कराए। उस शख्स ने पैसे नहीं लिए और कहा कि यह यूनिवर्सिटी की तरफ से कराया जा रहा है। इस पर कुछ और छात्र पॉलिश करवाने लगे। तभी एक विद्यार्थी ने पॉलिश करने वाले का चेहरा गौर से देखा तो उसके होश उड़ गए। वह तो जाकिर हुसैन थे। पूरे विश्वविद्यालय में हड़कंप मच गया। बाकी छात्र जहां थे वहीं रुक गए। किसी की समझ में नहीं आ रहा था कि अब किया क्या जाए।

उसी समय कुछ वरिष्ठ छात्र, जो विश्वविद्यालय का माहौल खराब करने में सबसे आगे रहते थे, उनके पास आए और कहने लगे, 'हमसे बहुत बड़ी गलती हुई। आज से आप जैसा कहेंगे हम लोग वैसा ही करेंगे। हमें माफ कर दीजिए।' जाकिर हुसैन बोले, 'तुम लोग अभी से अनुशासन का मखौल उड़ाओगे तो आगे चल कर तुम्हें परेशानी होगी। हम चाहते हैं कि यहां के छात्रों से दूसरे लोग कुछ सीखें।' उसके बाद विश्वविद्यालय का माहौल पूरी तरह बदल गया।



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