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Saturday, January 7, 2012

भक्त को दुःख क्यों मिलता है ?

भक्त को  दुःख क्यों मिलता है ?
प्रश्न :-ऐसा क्यों होता है की एक व्यक्ति जो बहुत आचार विचार और नियमों से चलता है कभी किसी के साथ बुरा नहीं करता ! निरंतर भगवान की भक्ति करता है फिर भी वह कष्ट पाता है जबकि जो लोग पूरी तरह मनमाना जीवन जीते हैं और दूसरों की और हानि करने से नहीं चूकते वे लोग अच्छा और सुखी जीवन जीते हैं ?
गुरुदेव :- कर्मों की एक लम्बी श्रखला है ! जो लोग आज बुरा करते हैं फिर भी अच्छा भोग रहे हैं ,वह आज के किय कर्मों का फल नहीं भोग रहें  है . वे अपने पूर्व कृत कर्मों का फल भोग रहे हैं और जो वो आज कर रहे हैं उसका फल फले किय गयकर्मों के बीज समाप्त होने पर भोगेंगे ! इसी प्रकार जो अच्छा कर करने पर भी बुरा फल भोग रहे हैं वे अपने पहले किय गय  कर्मों  का फल भोग रहे हैं ! जो अच्छे कर्म वे आज कर रहे हैं उनका सुनहरा फल उन्हें बविश्य में अवश्य मिलेगा !क्योंकि भगवान ने गीता में कहा है ("अवश्यमेव भोक्तव्यं कृतं कर्म शुभाशुभं " ) इस तरह कर्मों का यह चक्र सिद्धांत अटल है !

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