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Thursday, August 27, 2009

जिज्ञासु : पूज्य गुरुदेव ! जीवन में अगर भाग्य

  • जिज्ञासु : पूज्य गुरुदेव ! जीवन में अगर भाग्य की प्रबलता है तो कर्म का क्या महत्त्व ?

  • महाराजश्री : हमारा बहुत सारा जीवन दर्शन इस प्रकार भाग्यवादी हो गया कि लोगों ने दुर्घटनाओं को भी भाग्य मान कर स्वीकार कर लिया ! वहाँ बुधि विवेक और सावधानी के महत्त्व को भुला दिया ! सड़क पर यदि कोई ट्रक से टकराकर मर गया या ट्रक ड्राइवर ने शराब पीकर उसे कुचल दिया तो यही मान लिया गया कि इसकी मृत्यु ऐसे ही लिखी थी ! सोचने की बात है कि यदि ऐसा मान लिया जाए तो फिर क्या आवश्यकता है कि ट्रफिक विभाग बनाने की ! क्या आवश्यकता है किसी भी प्रकार की सावधानी बरतने की ! संसार भर में जो ट्रफिक नियम बने हैं उनके कारण सड़क दुरघटनाओं में मृत्यु दर काफी घटी है ! आंकडों के अनुसार तीन हजार सालों में १५ हजार युद्ध हुए ! उन युद्धों इतने लोग नहीं मारे गए जितने कि मियमों के अभाव में अथवा नियमों को न मानने के कारण दुर्घटनाओं से मारे गए ! इसलिए आज आवश्यकता इस बात की है कि इन अपनी कमजोरियों ,अपनी असावधानियों ,अपनी निष्क्रयता , और अपनी बुद्धिहीनता का दोष अपने भाग्य के माथे न मढ कर स्वयं विचार करें और साहस एवं पराक्रम से परिस्थितियों को अपने अनुकूल बनाने का प्रयास करें !
धर्मदूत जुलाई २००९

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