जिज्ञासु :-
हे गुरुदेव वह कोनसा जप या पूजा हे जिसमैं न माला, न आसन ,न तसवीर और न किसी विधि विधान की जरूरत हो ?और जो सभी पूजा पद्धतियों से उत्तम भी हो !महाराजश्री:-
जिस पूजन या जप मैं माला ,आसन ,तसवीर और न किसी विधि विधान की जरूरत नहीं होती वह मानसिक पूजन और अजपाजप है ! और यही सभी पूजा पद्धतियों मैं श्रेष्ठ भी है ! भगवान को आप मन से पूजें ,मानसिक कल्पना करें कि मैं उन्हे स्नान करवा रहा हूं ,दिव्य वस्त्र अर्पित कर रहा हूं ,नन्दन वन के फूल चढा रहा हूं ,कामधेनु गाय के दूध से भग्वान का भोग लगा रहा हूं ! मेरे प्रभु की आरती मैं आकाश मण्डल से स्वय चांद-सितारे उपस्थित हो गए हैं ,पिता परमात्मा दिव्य,स्वरूप मैं मेरे सामने विराजमान होकर पूजन को स्वीकार कर रहे हैं और आती-जाती सांस मैं प्रभु नाम को बसा लें कोई भी कार्य करें प्रभु का नाम अन्दर-अन्दर चलता रहे !
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